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Thursday, 23 April 2020

आशिक़ी

टूटे थे हम कभी, अब जुड़ गए.....
गहरे थे जो घाव, वो अब भर गए....
सोचते थे वो, जी ना सकेंगे उनके बिना...
समझदार थे हम, और बुद्धू वो बन गए...

तुम पर मरना और मर मिटना,
वो जमाना और था....
कतिलाना हर अदा पे,
दिल लगाना और था... 
नींव हिला कर प्यार की इमारतो की..
चल दिये तुम, क्या वो कोई और था....

आशिक़ थे हम कोई उपभोगी सामान नही..
प्रतिमाही वेतन वाले, तेरे सेवादार नही....
और मस्त है अपने जीवन में आज,
यहां तेरे अस्तित्व का नामो निशान नही....






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