एक पुरुष की व्यथा किसने जानी है,
सबको एक दर्द, सबकी एक कहानी है....
टूटा चश्मा, घिसते चप्पल पग पग यही रवानी है,
जिम्मेवारी के बोझ तले, पुरुषार्थ की यही कहानी है...
अरे बहुत सुनी है गाथा हमने स्त्री के बलिदान की,
त्याग की देवी, ममता की मूरत और कई उपहास की...
किन्तु भूल न जाना पुरुषो के इस त्याग को,
पुत्र, भाई और पिता के,
घर पर फ़र्ज़ निभाने को...
भूल गए वो खुद का जीवन ,
सबको खुश कर जाने को...
रात दिन मेहनत करता,
घर को कुशल चलाने को...
और किसी बात का श्रेय न लेता,
अपना फ़र्ज़ निभाने को...
लोकतंत्र के मोल तराजू में,
सभी समान अधिकारी है...
किन्तु ,
नारी के गम पर चर्चा करती,
पुरुषो पर मौन कहानी है...
तुलना नही किसी के त्याग और बलिदान की,
ये तो चर्चा है बस मौन और बखान की...
जीवन के इस चक्र में सबका काम महान है,
किसी का महादान तो बस किसी का गुप्तदान है....
- प्रियंक प्रवासी, बाघ
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