बेवफाई का तीर-ऐ-तरकश, ये आम हो गया
बेवफाई का तीर-ऐ-तरकश, ये आम हो गया...
जख्मे दिल ऐ तीर के ही, गुनाहगार हो गया....
कहते थे जो, जान भी देंगे इश्क़ में,
मुकरे वही, जब दिल उनका तलबगार हो गया...
खेल है दिल का, ये बाजार बन गया...
दिल ये नुमाइश का, समान बन गया...
छोड़ दे इश्क़, अब तेरे बस का नही ये 'परदेशी',
चंद पल के सुरूर का, ये मदिरापान बन गया.....
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