यह कविता एक ऐसे आशिक़ की अवस्था को दर्शाती है जिसे उसके साथी का साथ ना मिला और वह आज भी उसे भूल नही पा रहा है और लगातार उसके बिना जीने की नाकाम कोशिश करता है। उम्मीद करता हु आपको यह रचना पसंद आएगी..... इसका शीर्षक है-
तन्हाई
दुनिया की भीड़ में मुस्कुराते हम,
झूमते और खिलखिलाते हम...
पर...
कमबख्त ये तनहाई का गम,
करती है आंखे नम ...
फिर बस ये कहते हम.
रे यार तूने क्या किया,
चाहा फिर इनकार किया..
तड़पाया बहुत , घबराया बहुत..
भर -भर के आंसू तूने रुलाया बहुत..
तेरी याद में आज भी जीते हम,
तड़पते पर मुस्कुराते हम......
- प्रियंक प्रवासी
तन्हाई
दुनिया की भीड़ में मुस्कुराते हम,
झूमते और खिलखिलाते हम...
पर...
कमबख्त ये तनहाई का गम,
करती है आंखे नम ...
फिर बस ये कहते हम.
रे यार तूने क्या किया,
चाहा फिर इनकार किया..
तड़पाया बहुत , घबराया बहुत..
भर -भर के आंसू तूने रुलाया बहुत..
तेरी याद में आज भी जीते हम,
तड़पते पर मुस्कुराते हम......
- प्रियंक प्रवासी
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