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Saturday, 23 May 2020

क्या तब ना मुझको होश था


वक़्त अजीब सा लगता है लोग अजीबोगरीब घर बैठे कर रहा हलतो की तफ्तीश तस्वीरें देख सोचू ये तो मेरा दोस्त था न जाने क्यू छूट गए क्या तब ना मुझ को होश था में कोसू खुदको या आस पास वाले ही खाफी है यहां तो मन की बात रखने की भी मनाही है क्यू लड़ जाता में चोटी बातो पर क्यू कर लेता विश्वाश अफ़्वाओ पर क्या तब ना मुझको होश था क्या तब ना मुझको होश था

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